Sunday, September 04, 2005

20 हाइकु

पीपल-पत्ते
ताली बजाते, देख
बूँदों का नाच ।



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गोघूली बेला

लौटती है रम्भाती
माँ की ममता ।



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दिन बंजारा
फिरता है उदास
मारा-मारा ।



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बैठी मुँडेर
मयूर-नील संझा
पाँखें पसार ।



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कूकी जो पिकी
`छन्न' दोपहरिया
काँच-सी टूटी ।



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काकली सुन
नीम का हरा पेड़
बजाता धुन ।



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पीपल दादा
कहानियाँ सुनते
दिन भर की ।



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डालता चौक
आँसू-भीगी पातियाँ
माघ डाकियाँ ।



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पूजा को चली
लो, उषा ने सजा ली
सोने की थाली ।



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मचा है शोर
चिड़ियाँ बस्ते खोलें
हो गई भोर ।



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टहनी पर
लचकती चिड़ियाँ
गातीं प्रभाती ।



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सोने की डाली
शरद-दुपहर
कपूर-घुली ।



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पका सूरज
खेतों में फैले पड़े
गेहूँ के धान ।



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शोख़ बोलियाँ
हवा में ठुनकतीं
बुलबुल की ।



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नभ से गिरा
नारंगी फुटबॉल
तरु पे टँगा ।



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फूलों से लदा
भूला होशो हवास
अमल तास ।



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चहक रही
नोक दार पूँछ को
उठा, फुदकी ।



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पीली चोंच ने
मारी लम्बी डुबकी
पाई मछली ।



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बजाता फिरे
आवाज़ के घुँघरू
शकर खोरा।



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शिशिरोत्सव
पतझर पहन
पेड़ आए हैं ।
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-डॉ० सुधा गुप्ता

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