Sunday, September 04, 2005

ग्रीष्म पर कुछ हाइकु


आग का गोला
फट गया सुबह
बिखरे शोले !
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धूप -दारोगा
गश्त पर निकला
आग - बबूला !
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तंदूर तपा
धरती-रोटी सिंकी
दहक लाल !
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आग की गुफा
भटक गई हवा
जली निकली !
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फटा पड़ा है
हजार टुकड़ों में
पोखर -दिल !
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कुपिता धरा
अगन-महल में
आसन-पाटी !
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धूप से डर
पीली छतरी खोले
खड़ा बैसाख !
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धूप ने छला
काला हुआ हिरन
पानी न मिला !
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जेठ की आँच
हवाएँ खौलती हैं
औटते जीव !
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पानी की धुन
सूखे गले भटके
राजा मछेरा !
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लपटों घिरा
अगिया बैताल-सा
लू का थपेड़ा !
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कुँए, छबील
प्यास बुझाने वाले
मीत, लापता !
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-डॉ० सुधा गुप्ता

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